कवि का प्यार
सुबह का रियाज़, तुम्हारे नाम
शाम का रियाज़, तुम्हारे नाम;
धोरे पर बैठकर सुरों का क्रमन
गायन का अभ्यास, तुम्हारे नाम।
कलम का वर्णन सिर्फ तुम्हारी याद
कविता का भाव सिर्फ तुम्हारी तारीफ;
अन्तरे के अल्फाज़ तुमको समर्पित
मुखड़े के शब्दों में तुम्हारी तशरीफ़।
यगण-तगण-मगण हैं तुम्हारे लिए
पद-छंद-शायरी तुम्हें देख बुनते हैं;
हमारी जिन्दगी तो बस मुक्तक ही है
वर्ण-शब्द-मात्रा तुम्हारे लिए गिनते है।
दोहे सोरठे वाले बीजता था जो बीज़
अब वो पककर फसल बन चुकी है;
चंद शब्दों की थी दोस्ती की चौपाइ
मेरे प्यार की अब गज़ल बन चुकी है।
तुम मेरी बेरुखी जिंदगी का अलंकार हो
तुम तुलसी का दोहा, खैयाम की रुबाई हो;
मुझे पाश से शिव में बदलकर रख दिया
‘श्याम’ के पास तुम ‘लूना’ बनकर आई हो।
~Shyam Sunder
Kavi Ka Pyar
May 5, 2020
·
130 words
·
1 minute read