Dawat 2

May 20, 2020 · 226 words · 2 minute read


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मोहम्मद सद्दाम हुसैन जावेद रंगरेज
शक़्ल से बहुत भोले दिमाग से तेज,
शक़्ल इतनी भोली कि लगती विचित्र
स्कूल से थे वो हमारे एक अजीज मित्र।
हमारे घर आए;
लगा कोई काम बनाने आए
पर वो तो सब्जी खाने आए,
मैंने कहा दूर से आये हो खाना खाके जाना
वो बोले मेंने कह दिया घर खाना ना बनाना।
हम खाना खाने बैठे;
मित्र बोले भाई तुम तो निकले फर्जी
तुमने तो खल करदी मेरी सारी मर्जी,
बोला था भिंडी की बनाई सब्जी
बनाई  है देसी टिण्डी की सब्जी।
मैं बोला मित्र;
ये रोटी और बात दोनों गले से खिसकी है 
हमें पता ही नहीं चलता सब्जी किसकी है, 
हम तो रूखा-सूखा पचा लेतें है
भाभीजी जैसा देती है खा लेते है। 
मैंने जारी रखा;
वजह - बेवजह  कभी बवाल नहीं किया 
इनके बनाए खाने पर सवाल नहीं किया, 
मैं कहना नहीं चाहता पर कहना पड़ेगा
जो है खा लो वरना भूखा रहना पड़ेगा। 
इतने में भैया बोले;
इस बाला से हमारी जिंदगी सनी है 
तुम्हारी तो भाभी है हमारी पत्नी है,
इसलिए अपना दुख तुम्हारे साथ बाटता हूँ 
तुम तो एक दिन में परेशान हो गए 
मैं भी तो किसी तरह काटता हूँ। 
जावेद भाई बोले;
इस हालत में खुद को समझा लेंगे
टिंडी को भिंडी समझकर खा लेंगे;
लेकिन आगे से हम खुदा से डरेंगे 
तुम्हारे घर खाने की जिद ना करेंगे। 

~श्याम सुन्दर

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